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पत्नी की बीमारी पर संदेह जताते हुए दिल्ली HC ने सुनाया फैसला, गैंगस्टर नीरज बवाना की अंतरिम जमानत याचिका ख़ारिज

नई दिल्ली : हाई कोर्ट ने गैंगस्टर नीरज सहरावत उर्फ बवाना को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया है, जिसने ‘बीमार’ पत्नी की देखभाल के आधार पर यह मांग रखी थी। कोर्ट ने कहा कि अपराध की गंभीरता और आवेदक के आपराधिक इतिहास को देखते हुए, उसके फरार होने की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता। बवाना की याचिका ठुकराते हुए जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि आवेदक के फरार होने की आशंका एक गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है और इस तरह, अंतरिम जमानत देने का मानदंड यहां पूरा नहीं होता।

सरकारी वकील ने याचिका का किया विरोध

आपको बता दें कि गैंगस्टर ने अपनी पत्नी की मेडिकल कंडिशन के आधार पर 6 हफ्तों के लिए अंतरिम जमानत मांगी थी। वह मंगोलपुरी थाने में हत्या और आपराधिक साजिश के अपराधों के लिए 25 अगस्त 2015 में दर्ज एक एफआईआर के सिलसिले में हिरासत में है। पुलिस ने आवेदक से जुड़े 28 मामलों का ब्यौरा कोर्ट के सामने रखा। सहरावत की ओर से सीनियर एडवोकेट एन हरिहरन ने दलील दी थी कि आवेदक को पहले इस अदालत ने 30 जून, 2025 के आदेश के जरिए कस्टडी परोल दी थी। हालांकि, अस्पताल जाने के दौरान कई पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी ने मेडिकल ऑपरेशन को गंभीर रूप से बाधित किया। दूसरी ओर, पुलिस की ओर से सरकारी वकील तरंग श्रीवास्तव ने अंतरिम जमानत याचिका का कड़ा विरोध किया। तर्क दिया कि आवेदक का आपराधिक मामलों में लंबा इतिहास रहा है और वह लगातार गिरोहों के साथ गैंगवॉर में शामिल रहा है।

बता दें कि 30 जून को हाईकोर्ट ने बवानिया को अपनी बीमार पत्नी की सर्जरी के लिए सहमति देने और देखभाल करने के कस्टडी पेरोल पर रिहा करने की अनुमति दी थी. कोर्ट ने 1 जुलाई को दस बजे सुबह से शाम 4 बजे तक की कस्टडी पेरोल पर रिहा करने का आदेश दिया था. नीरज बवानिया पर आरोप है कि उसने 2015 में रोहिणी कोर्ट के लॉक अप से तिहाड़ जेल ले जाने के दौरान दो कैदियों को जेल वाहन के फर्श पर मारकर गिरा दिया और गमछे से गला घोंटकर हत्या कर दी थी.

पत्नी की बीमारी पर संदेह

हाई कोर्ट ने बवानिया की पत्नी की बीमारी की गंभीरता को लेकर भी संदेह जताया। कोर्ट ने कहा कि वह पुलिस के इस तर्क को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि एमआरआई रिपोर्ट मौजूद होने के बावजूद, परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा लगभग एक महीने तक उसे किसी ज्यादा बेहतर अस्पताल में शिफ्ट करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया और यह अब अर्जेंसी की दलील पर संदेह पैदा करता है।

3 दिनों की कस्टडी परोल

कोर्ट ने हालांकि, मानवीय आधार पर आवेदक को 3 दिनों की कस्टडी परोल देने की इच्छा जताई ताकि न्याय और सार्वजनिक सुरक्षा के हितों से समझौता किए बिना वह अपनी पत्नी के ट्रांसफर और इलाज के लिए जरूरी वित्तीय और लॉजिस्टिक व्यवस्था कर सके। इस दौरान बवानिया पर पहले वाले नियम ही लागू होंगे।

NEWS SOURCE Credit :lalluram

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