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हर किसी को जरूर कराना चाहिए, इस टेस्ट से हार्ट अटैक आने से पहले ही पता चल जाएगा

हार्ट की बीमारियों (CVD) से हर साल लगभग 18 मिलियन लोगों की मौत होती है, जिसमें से लगभग पांचवां हिस्सा भारत में होता है। ये आंकड़ा सभी कैंसर से होने वाली मौतों से भी अधिक है। हार्ट अटैक के कई कारण हैं। जिसमें खराब लाइफस्टाइल, हाई ब्लड प्रेशर और हाई कोलेस्ट्रॉल सबसे बड़े रिस्क फैक्टर हैं। इसके अलावा उच्च लिपोप्रोटीन (ए) या एलपी (ए) एक वंशानुगत स्थिति है जो हृदय रोग के जोखिम को बढ़ाती है, यह भारत में 4 में से 1 व्यक्ति को प्रभावित करती है, लेकिन इसका टेस्ट शायद ही कभी किया जाता है। डॉक्टर बढ़े हुए लिपोप्रोटीन की जांच कराने की सलाह देते हैं।

हार्ट अटैक आने से पहले पता लगाने वाला टेस्ट

लिपोप्रोटीन (ए) एक लौ डेन्सिटी वाला कोलेस्ट्रॉल होता है जो ज्यादा मात्रा खून में पहुंचने से ब्लड वेसल्स  में प्लाक (plaque) बना सकता है। लिपोप्रोटीन प्रोटीन और फैट मिलकर से मिलकर बनता है। लिपोप्रोटीन टेस्ट एक अहम बायोमार्कर की तरह काम करता है कि क्या आपको दिल की बीमारियां होने का खतरा है, जिससे स्ट्रोक हो सकता है। लिपोप्रोटीन (ए) टेस्ट आपके डेली रूटीन टेस्ट में शामिल नहीं है और अक्सर डॉक्टर की रिकमेंडेशन पर ही इसे किया जाता है।

हार्ट अटैक का आनुवांशिक खतरा

नोवार्टिस द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण के परिणामों के अनुसार, एशिया पेसिफिक और मिडिल इस्ट रीजन में तीन में से दो व्यक्ति (66%) नियमित हृदय परीक्षण नहीं करवाते हैं, जबकि लगभग आधे (45%) लोग आनुवंशिकता को हृदय रोग के जोखिम कारक के रूप में नहीं पहचानते हैं। एलपी(ए) के बारे में जागरूकता और भी कम है, केवल 22% लोगों ने बताया कि उन्होंने इस बायोमार्कर परीक्षण के बारे में सुना था, जबकि केवल 7% ने ही इसे करवाया था।

लिपोप्रोटीन टेस्ट से हार्ट अटैक के खतरे की पहचान

अपोलो हॉस्पिटल्स, इंडिया के कार्डियोलॉजी निदेशक, डॉ. ए. श्रीनिवास कुमार ने कहा, ‘ हृदय रोग भारत में मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक बना हुआ है, और बढ़े हुए एलपी(ए) जैसे जोखिम कारकों के बारे में जागरूकता बेहद जरूरी है। उन्होंने आगे कहा, दक्षिण एशियाई लोग विशेष रूप से असुरक्षित हैं। भारत में एक्यूट कोरोनरी सिंड्रोम के 34% रोगियों में एलपी(ए) उच्च होता है। डायबिटीज, मोटापा और हाई ब्लड प्रेशर जैसे सामान्य जोखिम कारकों के साथ दिल का दौरा या स्ट्रोक की संभावना तेजी से बढ़ जाती है। हाई रिस्क वाले लोगों की की जल्द पहचान करने और हार्ट अटैक के खतरे को रोकने के लिए एलपी(ए) टेस्ट जरूरी है।

लिपोप्रोटीन (ए) ब्लड टेस्ट  का उपयोग क्या है? (What is the use of Lipoprotein (a) Blood Test?)

लिपोप्रोटीन (ए) टेस्ट हृदय रोगों (cardiovascular diseases) के डेवलॅप होने के रिस्क का  एनालिसिस करने में मदद कर सकता है जिससे स्ट्रोक और दिल का दौरा पड़ सकता है। अर्ली स्टेज में हृदय रोगों का डायग्नोसिस करने के उद्देश्य से लिपोप्रोटीन (ए) के लेवल का टेस्ट किया जाता है। कुछ कंडीशन में डॉक्टर लिपोप्रोटीन ए टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं। जैसे-

  • 55 साल की उम्र में या उससे पहले दिल की बीमारियों की फैमिल हीस्ट्री
  • वैस्कुलर  डिसीसेस या हृदय की स्थिति
  • पहले स्ट्रोक या दिल का दौरा पड़ चुका हो
  • पोस्टमेनोपॉज़श के बाद महिलाओं में हृदय रोग
  • डायबिटीज , हाइपरटेंशन  एंड  वैस्कुलर डिसीसेस की संभावना अधिक होती है

ब्लड टेस्ट में लिपोप्रोटीन (ए) की नार्मल रेंज क्या है? (What is the Normal Range of Lipoprotein (a) in Blood Tests?)

लिपोप्रोटीन (ए) का लेवल लाइफटाइम स्थिर रहता है और किसी व्यक्ति की लाइफस्टाइल को ज्यादा प्रभावित नहीं करता है। लिपोप्रोटीन (ए) का नार्मल लेवल 30 मिलीग्राम / डीएल से कम माना जाता है। इससे अधिक लेवल आपके ब्लड में हाई कोलेस्ट्रॉल को इंडीकेट करता  है जो हृदय रोगों के बढ़ते रिस्क का इंडिकेशन है। पोस्टमेनोपॉज़ल (postmenopausal) महिलाओं में लिपोप्रोटीन (ए) का लेवल आमतौर पर थोड़ा बढ़ जाता है।

NEWS SOURCE Credit :punjabkesari

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