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रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे, प्रदूषण से जूझ रहा लाल किला, दीवारों पर जम रही काली परतें

भारत की शान लाल किला(Red Fort) जो कभी मुगलों की शक्ति और स्थापत्य कला का प्रतीक माना जाता था, अब प्रदूषण की चपेट में है। एक हालिया शोध में खुलासा हुआ है कि दिल्ली की जहरीली हवा इस ऐतिहासिक धरोहर को धीरे-धीरे नुकसान पहुँचा रही है। जिस लाल किले से हर साल स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री भारत का तिरंगा फहराते हैं, उसकी लाल दीवारें अब काली पड़ने लगी हैं। यह बदलाव विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय है। शोधकर्ताओं के अनुसार, दिल्ली की खराब वायु गुणवत्ता में मौजूद धूल, कार्बन कण और रासायनिक तत्व लाल किले की बलुआ पत्थर की दीवारों पर जमकर उनकी चमक छीन रहे हैं। कभी दूर से चमकने वाली लाल दीवारें अब प्रदूषण की परतों से ढकी नज़र आती हैं। इतिहासकारों का मानना है कि यह केवल एक इमारत का नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान का सवाल है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में लाल किले की भव्यता और भी कम हो सकती है।

15 सितंबर 2025 को जारी नई वैज्ञानिक स्टडी में साफ किया गया है कि दिल्ली की जहरीली हवा में मौजूद PM2.5, NO2 और SO2 जैसे प्रदूषक लाल किले की सैंडस्टोन दीवारों पर सल्फेशन और भारी धातुओं की परत बना रहे हैं। यही वजह है कि दीवारों की लाल चमक अब फीकी पड़ती जा रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह सिर्फ सौंदर्य का मामला नहीं बल्कि संरक्षण का संकट है। यूनेस्को की रिपोर्ट और शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो लाल किले की भव्यता और भी प्रभावित होगी। इसके लिए उन्होंने कुछ अहम सुझाव दिए हैं. दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के लिए सख्त कदम, स्मारक की नियमित सफाई और मॉनिटरिंग, परिसर के चारों ओर ग्रीन बेल्ट का विकास.

प्रदूषण की मार से काला पड़ रहा लाल किला

दिल्ली का लाल किला, जिसे 17वीं सदी में मुगल बादशाह शाहजहां ने बनवाया था, आज अपनी ऐतिहासिक पहचान खोने की कगार पर है। भारतीय और इतालवी वैज्ञानिकों के संयुक्त अध्ययन में पता चला है कि वायु प्रदूषण के कारण इसकी लाल बलुआ पत्थर की दीवारों पर काली परतें (black crusts) जम रही हैं। ये परतें न केवल किले की खूबसूरती को फीका कर रही हैं, बल्कि इसकी संरचनात्मक अखंडता (structural integrity) के लिए भी गंभीर खतरा पैदा कर रही हैं।

यह विस्तृत वैज्ञानिक जांच जून 2025 में प्रकाशित हुई, जिसमें 2021 से 2023 तक के वायु गुणवत्ता डेटा का विश्लेषण किया गया। अध्ययन में सामने आया कि दिल्ली में फाइन पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5) का स्तर राष्ट्रीय सीमा से लगभग ढाई गुना अधिक है। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) का स्तर भी सामान्य से ऊपर है। विशेषज्ञों का कहना है कि ये प्रदूषक पत्थर के क्षरण और सल्फेशन को बढ़ा रहे हैं, जिससे दीवारों पर काली परतें जम रही हैं और लाल किले की दीवारें धीरे-धीरे अपनी ऐतिहासिक लालिमा खो रही हैं।

ऐतिहासिक महत्व और बढ़ती समस्या

दिल्ली का लाल किला, जिसे 1639 में मुगल बादशाह शाहजहां ने बनवाया और 1648 में पूरा किया गया, आज मुगल स्थापत्य की सबसे पहचान योग्य निशानी है। इसकी 20–23 मीटर ऊंची और 14 मीटर मोटी लाल बलुआ पत्थर की दीवारें लगभग 2.4 किलोमीटर लंबी हैं। 2007 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर घोषित किया और तब से इसे विशेष सुरक्षा मिली है। लेकिन अब वही लाल पत्थर धीरे-धीरे काले धब्बों में बदलते दिख रहे हैं। यह काली परत खासकर जफर महल जैसे आंतरिक हिस्सों और ट्रैफिक वाली दीवारों के पास अधिक मोटी हो चुकी है। 2018 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने करीब 2 मीटर मोटी गंदगी की परत हटाई थी, लेकिन लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण ने समस्या फिर बढ़ा दी। विशेषज्ञों का कहना है कि PM2.5, NO2 और SO2 जैसे प्रदूषक लाल किले की दीवारों पर सल्फेशन और भारी धातुओं की परतें जमा कर रहे हैं, जिससे इसकी संरचनात्मक अखंडता और ऐतिहासिक लालिमा खतरे में हैं।

क्या है इस काली परत में?

वैज्ञानिकों ने किले के विभिन्न हिस्सों जैसे जाफर महल, मोती मस्जिद और दिल्ली गेट से नमूने एकत्र किए। इन नमूनों के विश्लेषण से पता चला कि दीवारों पर जमी काली परतें जिप्सम, बसानाइट और वेडेलाइट जैसे पदार्थों से बनी हैं। इन परतों में सीसा, जस्ता, क्रोमियम और तांबा जैसी भारी धातुएं भी पाई गईं, जिनका स्रोत वाहनों का धुआं, सीमेंट फैक्ट्रियां और निर्माण कार्य हैं। विशेषज्ञों ने बताया कि ये काली परतें कुछ जगहों पर 0.05 मिलीमीटर से 0.5 मिलीमीटर तक मोटी हो चुकी हैं, खासकर उन दीवारों पर जो भारी ट्रैफिक वाले इलाकों की ओर हैं। यह मोटी परत पत्थर की सतह से इतनी मजबूती से चिपक गई है कि सतह पर दरारें पड़ रही हैं और पत्थर उखड़ने का खतरा बढ़ गया है, जिससे लाल किले की बारीक नक्काशी और ऐतिहासिक लालिमा को भी नुकसान पहुंच रहा है।

शोध में शामिल संस्थान और सहयोग:

  • आईआईटी रुड़की, आईआईटी कानपुर, वेनिस विश्वविद्यालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI)
  • यह अध्ययन भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग और इटली के विदेश मंत्रालय के सहयोग का हिस्सा था।
  • शोधकर्ता कहते हैं कि यह लाल किले पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को समझने वाला पहला अध्ययन है।

समाधान की राह और विशेषज्ञों की राय

रिपोर्ट में कहा गया है कि लाल किले की रक्षा के लिए बहुस्तरीय रणनीति अपनाना जरूरी है, जिसमें शामिल हैं. किले के आसपास ग्रीन बेल्ट विकसित करना, ट्रैफिक का दबाव कम करना, किले की सतह की नियमित सफाई और मॉनिटरिंग, प्रदूषण नियंत्रण मानकों का सख्ती से पालन विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि अगर प्रदूषण पर लगाम नहीं लगी तो यह धरोहर आने वाले दशकों में गंभीर नुकसान झेल सकती है।

यूनेस्को की सिफारिश

भारत सरकार और दिल्ली प्रशासन को लाल किले की सुरक्षा को तत्काल प्राथमिकता देने की सलाह दी गई है। यह अध्ययन सिर्फ दिल्ली के लिए नहीं, बल्कि देश के अन्य ऐतिहासिक स्थलों के लिए भी चेतावनी है कि यदि प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं हुआ, तो आने वाली पीढ़ियां इन धरोहरों को उसी रूप में नहीं देख पाएंगी। लाल किला केवल एक इमारत नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान है। विशेषज्ञ और इतिहासकार मानते हैं कि इसके संरक्षण के लिए तत्काल और ठोस कदम उठाना हमारी ज़िम्मेदारी है, ताकि यह गौरवशाली धरोहर आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रहे।

NEWS SOURCE Credit :lalluram

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