Rapid24news

Har Khabar Aap Tak

वैवाहिक झगड़ों में नाबालिग बच्चे को ‘हथियार’ बनाना क्रूरता, तलाक का आधार: दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

दिल्ली हाईकोर्ट(Delhi High Court) ने तलाक से जुड़े एक अहम मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया है कि पति या पत्नी द्वारा नाबालिग बच्चे को जानबूझकर दूसरे माता-पिता से अलग करना मनोवैज्ञानिक क्रूरता है और यह तलाक का वैध आधार माना जा सकता है। हाईकोर्ट ने कहा कि वैवाहिक विवाद में बच्चे को ‘हथियार’ बनाना न सिर्फ बच्चे के मानसिक विकास को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि यह दूसरे जीवनसाथी पर गंभीर मानसिक उत्पीड़न के समान है। यह फैसला हाईकोर्ट ने उस महिला की याचिका पर सुनाया, जिसने सितंबर 2021 में फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए तलाक के आदेश को चुनौती दी थी। फैमिली कोर्ट ने पति के आरोपों को सही मानते हुए क्रूरता के आधार पर विवाह को भंग कर दिया था। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ऐसे मामलों में अदालत को बच्चे के सर्वोत्तम हित को भी ध्यान में रखना होगा, क्योंकि नाबालिग को माता-पिता के विवाद में बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता।

जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की बेंच ने 19 सितंबर को दिए आदेश में कहा, “बच्चे को हथियार बनाना न केवल दूसरे माता-पिता को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि बच्चे के भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालता है और इससे पारिवारिक सद्भाव की नींव कमजोर होती है।” हाईकोर्ट ने यह फैसला उस महिला की याचिका पर सुनाया, जिसने फैमिली कोर्ट द्वारा क्रूरता के आधार पर विवाह भंग करने के आदेश को चुनौती दी थी। अदालत ने माना कि ऐसे मामलों में अदालतों को बच्चे के सर्वोत्तम हित को प्राथमिकता देनी चाहिए और किसी भी स्थिति में उसे माता-पिता के बीच विवाद का साधन नहीं बनने देना चाहिए।

इस जोड़े की शादी मार्च 1990 में हुई थी और उनका एक बेटा भी हुआ। पत्नी ने 2008 से पति के साथ रहने से इनकार कर दिया। इसके बाद पति ने 2009 में तलाक की अर्जी दायर की। लंबी सुनवाई के बाद, सितंबर 2021 में फैमिली कोर्ट ने क्रूरता के आधार पर पति को तलाक दे दिया। पत्नी ने इस फैसले को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां अदालत ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि बच्चे को जानबूझकर दूसरे माता-पिता से अलग करना न केवल उनके रिश्ते को प्रभावित करता है, बल्कि बच्चे की मानसिक स्थिति पर भी गहरा असर डालता है। इसलिए, इसे वैवाहिक क्रूरता माना जाएगा।

महिला का दाव- पति यौन संबंध बनाने को तैयार नहीं था

महिला ने अपनी याचिका में कहा कि उसने अपने पति से नाता नहीं तोड़ा। तलाक की अर्जी दायर होने के बाद भी वह अपने बेटे के साथ ससुराल में ही रह रही थी। उसने आगे आरोप लगाया कि: उसका पति यौन संबंध बनाने को तैयार नहीं था। ससुराल वाले उसके साथ मारपीट करते थे। महिला ने अपनी याचिका में कहा कि उसने अपने पति से नाता नहीं तोड़ा और तलाक की अर्जी दायर होने के बाद भी बेटे के साथ ससुराल में रही। पति यौन संबंध बनाने को तैयार नहीं था। ससुराल वालों ने उसके साथ मारपीट की।

पति की दलीलें

पति ने अपनी याचिका में कहा कि मौजूदा मुलाकात आदेशों के बावजूद उसने चार-पाँच बार अपने बच्चे से मिलने की कोशिश की, लेकिन बच्चे ने बात करने से इनकार कर दिया। इस कारण उसने मुलाकातें बंद कर दीं। तलाक की अर्जी दायर करने के बाद महिला ने उसके और परिवार के खिलाफ कई आपराधिक शिकायतें दर्ज कराईं।

मनोवैज्ञानिक क्रूरता का एक गंभीर रूप

जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर द्वारा लिखित फैसले में हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा, “नाबालिग बच्चे को प्रतिवादी से जानबूझकर अलग-थलग करना मनोवैज्ञानिक क्रूरता का एक गंभीर रूप है। वैवाहिक विवाद में बच्चे को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने से न केवल प्रभावित माता-पिता को चोट पहुंचती है, बल्कि बच्चे की भावनात्मक स्वास्थ्य भी नष्ट हो जाता है और पारिवारिक सौहार्द की जड़ पर आघात पहुंचता है।” दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने 29 पन्नों के फैसले में कहा है कि वैवाहिक यौन संबंध से लगातार वंचित रखना क्रूरता की पराकाष्ठा है। कोर्ट ने स्पष्ट किया: “यह सर्वविदित है कि यौन संबंध और वैवाहिक कर्तव्यों का निर्वहन शादी का आधार है। उनके लिए लगातार इनकार करना न केवल वैवाहिक जीवन के बिखराव को दर्शाता है, बल्कि क्रूरता का भी प्रतीक है, जिसके लिए न्यायिक हस्तक्षेप जरूरी है।” हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि नाबालिग बच्चे का प्रयोग वैवाहिक विवाद में हथियार की तरह करना सिर्फ माता-पिता के रिश्तों को ही नहीं बल्कि बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य और पारिवारिक सौहार्द को भी गंभीर रूप से प्रभावित करता है।

NEWS SOURCE Credit :lalluram

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

WhatsApp