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किराना हिल्स से आ रही हैं चौंकाने वाली खबरें, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से हिल गया पाकिस्तान का न्यूक्लियर सिस्टम?

भारत की सर्जिकल कार्रवाई से एक बार फिर दुनिया की नजर पाकिस्तान की सबसे संवेदनशील संपत्ति – उसके परमाणु हथियारों – की सुरक्षा पर टिक गई है। भारतीय सेना ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) और देश के भीतर कई सौ किलोमीटर अंदर तक घुसकर जिन सैन्य अड्डों और एयरबेस पर निशाना साधा, उनमें से कुछ को परमाणु संचालन और सुरक्षा के लिहाज से अहम माना जाता रहा है। विशेष रूप से नूर खान, रफीकी, मुरीद, सुक्कुर और सियालकोट एयरबेस को हुए भारी नुकसान ने पाकिस्तान की रक्षा क्षमताओं की पोल खोल दी है। नूर खान एयरबेस, जो सैन्य लॉजिस्टिक्स और एयर-रिफ्यूलिंग का प्रमुख केंद्र है, लंबे समय से पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़ा रहा है। सुक्कुर बेस को तो सीधे तौर पर परमाणु हथियारों के गोदामों के दायरे में माना जाता है।

क्या परमाणु हथियार सुरक्षित हैं? दुनिया भर में चिंता का माहौल

हमले के बाद न केवल पाकिस्तान बल्कि अमेरिका, यूरोप और अन्य वैश्विक शक्तियों के बीच यह सवाल गूंजने लगा है कि क्या पाकिस्तान अपने परमाणु शस्त्रागार की रक्षा करने में सक्षम है? पाकिस्तान की खतरनाक आतंकी पनाहगाहों और गैर-जिम्मेदार सैन्य नेतृत्व के इतिहास के कारण अमेरिका समेत कई देशों को डर है कि कहीं ये हथियार किसी गलत हाथों में न चले जाएं। इस आशंका को उस वक्त और बल मिला जब सोशल मीडिया पर चर्चा शुरू हुई कि अमेरिकी न्यूक्लियर इमरजेंसी सपोर्ट एयरक्राफ्ट को पाकिस्तान में देखा गया है – संभवतः किसी आपात स्थिति के कारण।

भारत का दो टूक बयान: “परमाणु अड्डों पर नहीं किया हमला”

जब मीडिया ने भारतीय सेना से पूछा कि क्या परमाणु हथियारों से जुड़े ठिकानों पर भी हमला किया गया, तो एयर मार्शल ए.के. भारती ने स्पष्ट किया: “हमने किराना हिल्स पर कोई हमला नहीं किया। यह उन लक्ष्यों की सूची में शामिल नहीं था, जिसकी जानकारी हमने सार्वजनिक रूप से दी थी।” लेकिन यह सफाई अटकलों को पूरी तरह शांत नहीं कर सकी, खासकर तब जब अंतरराष्ट्रीय निगरानी एजेंसियों की बढ़ती सक्रियता देखी जा रही है।

पाकिस्तान की बेबसी और अमेरिका की दिलचस्पी

भारत के हमले से चौतरफा घिर चुके पाकिस्तान की स्थिति अब इतनी कमजोर हो चुकी है कि उसे अमेरिकी सैन्य समर्थन के बदले अपनी रणनीतिक सुविधाएं सौंपने की नौबत आ सकती है। वर्षों से अमेरिका पाकिस्तान के एयरबेसों का इस्तेमाल करना चाहता था, लेकिन चीन और घरेलू दबावों के कारण पाकिस्तान हमेशा इससे बचता रहा। अब, मौजूदा हालातों में अमेरिका को वह अवसर दिखाई दे रहा है, जिसका वह लंबे समय से इंतजार कर रहा था -पाकिस्तान की मजबूरी का लाभ उठाना।

दुनिया की नजर पाकिस्तान पर, भारत की रणनीति पर विश्वास

सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल कंवल जीत सिंह ढिल्लों का कहना है, “परमाणु हथियारों की सुरक्षा वैश्विक जिम्मेदारी है। पाकिस्तान को यह साबित करना होगा कि वह इस जिम्मेदारी को निभा सकता है। वरना अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण को सक्रिय होना ही पड़ेगा।”

NEWS SOURCE : punjabkesari

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